अमीनुल-क़ादरी ने नसब बदला है

अमीनुल-क़ादरी नसब बदल कर सय्यद हुआ है

मालेगांव के अमीनुल-क़ादरी ने ख़ुद एतेराफ़ किया है कि हमारा ख़ानदान कई पुश्तों से शहर मालेगांव में आबाद है, अगर वाक़ई ऐसा है तो मालेगांव वाले उस की सियादत का इनकार क्यों करते हैं? अगर उस के सय्यद होने का इनकार करने वाले उस के बाप दादा के वक़्त से इनकार किये होते तो उस के बाप दादा ने उस का जवाब दिया होता और इस ताल्लुक़ से उन की कोई वज़ाहत आई होती कि हम सय्यद हैं और हमारी सियादत पर एतेराज़ करने वाले ग़लती पर हैं लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि अमीनुल-क़ादरी की ज़िंदगी से पहले किसी ने उस के नसब पर एतेराज़ नहीं किया जिसकी वजह यह थी कि उस के बाप दादा ने ख़ुद को कभी सय्यद कहा या कहेलवाया ही नहीं था और शहर के लोग भी उन्हें सय्यद नहीं जानते थे, ना सय्यद कहते थे, इस लिए कभी सियादत के इनकार की नौबत ही ना आई। सियादत पर एतेराज़ तो उस वक़्त हुआ जब अमीनुल-क़ादरी ने ख़ुद को सय्यद कहना शुरू किया।

आज से तक़रीबन 23 साल पहले जब अमीनुल-क़ादरी ने मालेगांव वालों को ख़बर दी कि मैं सय्यद हूँ, उस से पहले पूरी दुनिया में किसी को इस बात का इलम नहीं था कि यह सय्यद है, यहां तक कि उस के बाप को भी इलम नहीं था, तो सवाल यह पैदा होता है कि अमीनुल-क़ादरी को किस ने कहा कि तुम सय्यद हो? और जब उस का बाप ज़िंदा था तो बताने वाले ने उस के बाप को क्यों नहीं बताया?

बहरे-हाल जब अमीनुल-क़ादरी ने ख़ुद को सय्यद कहा तो शहर मालेगांव में चारों तरफ़ से एतराज़ की आवाज़ उठने लगी। हालाँकि मालेगांव में सय्यद और भी हैं और आलिम व मौलाना और मुफ़्ती भी बहुत हैं, लिहाज़ा ये कहना फ़ुज़ूल है कि हसद की बुनियाद पर लोगों ने उस पर एतराज़ किया, इसी तरह इस बात की भी कोई गुंजाइश नहीं कि सुन्नी दावते इस्लामी से जुड़े होने की वजह से लोगों ने इस की मुख़ालिफ़त की क्योंकि उस वक़्त तक सुन्नी दावते इस्लामी के ख़िलाफ़ अकाबिर उल्मा का कोई हुक्म नहीं आया था और आज भी कुछ शहरों में सय्यद घराने से ताल्लुक़ रखने वाले लोग इस तंज़ीम से जुड़े हैं लेकिन इस की बिना पर कोई उनकी सियादत का इनकार नहीं करता। लेकिन अमीनुल-क़ादरी पर सियादत के ताल्लुक़ से लोगों का एतराज़ लगातार होता रहा जिसकी वजह से आख़िर-कार उसने अपने वहाबी दोस्तों की मदद से म्यूनसिपल कारपोरेशन में पैदाइश के रजिस्टर मैं ख़ुद के नाम के आगे सय्यद का इज़ाफ़ा करवा दिया। आप उस रजिस्टर का फ़ोटो नीचे देख सकते हैं। इस में साफ़ नज़र आ रहा है कि इस के नाम आमिन अली के ऊपर लफ़्ज़ सय्यद बाद में बढ़ाया गया है क्योंकि वह ऊपर लिखा हुआ है, जबकि इस रजिस्टर में आम तौर पर ऐसा नहीं किया जाता और बड़े नाम लिखने के लिए नीचे की लाईन इस्तेमाल की जाती है

दूसरी निशानी यह कि इस बढाए हुए लफ़्ज़ सय्यद में जितने हुरूफ़ इस्तेमाल हुए हैं यानी स, , द ये तीनों हुरूफ़ उसी रजिस्टर में दूसरी जगह भी इस्तेमाल हुए हैं। अगर आप दोनों की शक्लों पर ग़ौर करें तो उन में फ़र्क़ साफ़ महसूस किया जा सकता है। इस से साबित होता है कि लफ़्ज़ सय्यद बाद में बढ़ाया गया है। (ज़ूम करके देखें)

पहले अमीनुल-क़ादरी का नाम इस तरह लिखा था:
आमिन अली

सय्यद का लफ़्ज़ बढ़वाने के बाद इस तरह हो गया:
सय्यद
आमिन अली
इसी तरह उस के बाप का नाम पहले इस तरह लिखा था:
यासीन अली सरवर अली

सय्यद का लफ़्ज़ बढ़वाने के बाद वालिद का नाम इस तरह हो गया:
सय्यद
यासीन अली सरवर अली
अमीनुल-क़ादरी के नाम में जो लफ़्ज़ सय्यद बाद में बढ़ाया गया उस के हुरूफ़ में साफ़ फ़र्क़ है।

पैदाइश के रजिस्टर में लफ़्ज़ सय्यद बढ़वाने के बाद अमीनुल-क़ादरी ने 16 नवंबर 2017 को मालिगांव म्यूनसिपल कारपोरेशन से अपना बर्थ सर्टीफिकेट जारी करवाया तो उस में सय्यद लिखा हुआ मिला। नीचे ग़ौर से देखिए और सर्टीफिकेट की तारीख़ भी देखिए।

जब अमीन उल-क़ादरी ने अपने नाम के साथ सय्यद लिखा हुआ बर्थ सर्टीफिकट जारी करवाया तो मालिगांव की सुनी तन्ज़ीमों के ज़िम्मा दारान ने 29 नवंबर 2017 को अमीन उल-क़ादरी के दादा सरवर अली की वफ़ात का सर्टीफिकट (Death Certificate) हासिल किया। उस में उस वक़्त भी उस के दादा के नाम के साथ सय्यद नहीं लिखा हुआ था। आप नीचे बग़ौर देखिए और सर्टीफिकेट की तारीख़ भी देखिए:

इस से यह बात वाज़ेह हो जाती है कि अमीनुल-क़ादरी हक़ीक़तन सय्यद नहीं है बल्कि उसने नसब बदल कर ख़ुद को सय्यद कहना और कहेलवाना शुरू किया है और ऐसे ही शख़्स के बारे में सरकारे दो-आलम सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम का इरशादे पाक है:

من ادعی الی غیرابیہ فعلیہ لعنۃ ﷲ والملٰئکۃ والناس اجمعین لایقبل ﷲ منہ یوم القیٰمۃ صرفا ولا عدلا، ھذا مختصر۔

यानी जो अपने बाप के सिवा दूसरे की तरफ़ अपने आपको निसबत करे, उस पर खुद अल्लाह तआला और सब फ़रिश्तों और आदमीयों की लानत है, अल्लाह तआला क़ियामत के दिन उस का ना फ़र्ज़ क़बूल करे ना नफ़ल। मुख़्तसरन।
अलमोजमुलकुबरा, हदीस ६४
(फतावा रज़वीया मुतर्जम, ज:13 स:86)


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अमीनुल-क़ादरी वहाबियों के साथ मिल कर प्रोग्राम करता है सबूत देखने के लिए क्लिक कीजीए:

अमीनुल-क़ादरी के दोस्त वहाबी देवबंदी हैं। सबूत देखने के लिए क्लिक कीजीए:

सुन्नी दवाते इस्लामी के ताल्लुक़ से अकाबिर उलमा ए अहलेसुन्नत का हुक्म जानने के लिए क्लिक कीजीए:


امین القادری ایک منہاجی  یعنی طاہرالپادری کی پیروی کرنے والے پر دل و جان سے فدا ہے، بٹن دبا کر تفصیل دیکھیے:

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